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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

सृजनशीलता और उल्लास का प्रतीक है 'वसंत'

वसंत का आगमन हो चुका है।  फिजा में चारों तरफ मादकता और उल्लास का अहसास है।  कभी पढ़ा करते कि 6 ऋतुएं होती हैं- जाड़ा, गर्मी, बरसात, शिशिर, हेमत, वसंत।  पर ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव ने इन्हें इतना समेट दिया कि पता ही नहीं चलता कब कौन सी ऋतु निकल गई। पूरे वर्ष को जिन छः ऋतुओं में बांटा गया है, उनमें वसंत मनभावन मौसम है,  न अधिक गर्मी है न अधिक ठंड। यह तो शुक्र है कि अपने देश भारत में कृषि एवम् मौसम के साथ त्यौहारों का अटूट सम्बन्ध है। रबी और खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही साल के दो सबसे सुखद मौसमों वसंत और शरद में तो मानों उत्सवों की बहार आ जाती है। वसंत में वसंतोत्सव, सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि, रंग पंचमी, होली और शीतला सप्तमी के अलावा चैत्र नवरात्रि में  नव संवत्सर आरंभ, गुड़ी पड़वा,घटस्थापना, रामनवमी, चैती दशहरा, महावीर जयंती इत्यादि त्यौहार मनाये जाते हैं। वास्तव में ये पर्व सिर्फ एक अनुष्ठान भर नहीं हैं, वरन् इनके साथ सामाजिक समरसता और नृत्य-संगीत का अद्भुत दृश्य भी जुड़ा हुआ है। वसंत ऋतु में चैती, होरी, धमार जैसे लोक संगीत तो माहौल को और मादक बना देते हैं। 

माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा वसंत का आरंभ हो जाता है। वसंत का उत्सव प्रकृति और श्रृंगार का उत्सव है। इसी समय से प्रकृति के सौंदर्य में निखार दिखने लगता है। वसंत में उर्वरा शक्ति अर्थात उत्पादन क्षमता अन्य ऋतु की अपेक्षा बढ़ जाती है।  वन में टेसू के फूल आग के अंगारे की तरह लहक उठते हैं, खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल वसंत ऋतु की पीली साड़ी- सदृश दिखते हैं। किसी कवि ने कहा है कि वसंत तो अब गांवों में ही दिखता है, शहरों में नहीं। यदि शहरों में देखना है तो इस दिन पीले कपड़े पहने लड़कियां ही वसंत का अहसास कराती हैं। यह सच भी है क्योंकि क्योंकि वसंत में सरसों पर आने वाले पीले फूलों से समूची धरती पीली नजर आती है। इसी कारण इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने का चलन है।इन दिनों बोगनवेलिया, टेसू (पलाश), गुलाब, कचनार, कनेर आदि फूलने लगते हैं। आमों में बौर आ जाते हैं, गुलाब और मालती आदि के फूल खिलने लगते हैं। आम-मंजरी और फूलों पर भौंरे मँडराने लगते हैं और कोयल की कुहू-कुहू की आवाज प्राणों को उद्वेलित करने लगती है। वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनमें नए-नए गुलाबी रंग के पल्लव मन को मुग्ध करते हैं। सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति वसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है। जौ-गेहूँ में बालियाँ आने लगती हैं और वन वृक्षों की हरीतिमा मन को अपनी ओर आकर्षित करती है। पक्षियों के कलरव, पुष्पों पर भौरों का गुंजन तथा कोयल की कुहू-कुहू मिलकर एक मादकता से युक्त वातावरण निर्मित करते हैं। यौवन हमारे जीवन का वसंत है तो वसंत इस सृष्टि का यौवन है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में वसंत का अति सुंदर व मनोहारी चित्रण किया है। भगवान कृष्ण ने गीता में 'ऋतूनां कुसुमाकरः' कहकर ऋतुराज वसंत को अपनी विभूति माना है। कविवर जयदेव तो वसंत का वर्णन करते थकते ही नहीं। 

हमारे यहाँ त्यौहारों को केवल फसल एवं ऋतुओं से ही नहीं वरन् दैवी घटनाओं से जोड़कर धार्मिक व पवित्र भी बनाया गया है। यही कारण है कि भारतीय पर्व और त्यौहारों में धार्मिक देवी-देवताओं, सामाजिक घटनाओं व विश्वासों का अद्भुत संयोग प्रदर्शित होता है। वसंत पंचमी को त्योहार के रूप में मनाए जाने के पीछे भी कई ऐसे दृष्टान्त हैं। पीत वस्त्र धारण कर, पीत भोजन सेवन कर वसंत का स्वागत आज भी इसी दिन से होता है। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसीलिए इस दिन विद्या तथा संगीत की देवी की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि वसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार सरस्वती की पूजा की थी और तब से वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा करने का विधान हो गया। छोटे बच्चों को अक्षरारंभ कराने के लिए भी यह अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।

चरक संहिता में कहा गया है कि इस दिन कामिनी और कानन में अपने आप यौवन फूट पड़ता है। यही कारण है कि वसंत पंचमी का उत्सव मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है और तदनुसार  वसंत के सहचर कामदेव तथा रति की भी पूजा होती है। इस अवसर पर ब्रजभूमि में भगवान्‌ श्रीकृष्ण और राधा के आनंद-विनोद का उत्सव मुख्य रूप से मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता हैं। वसंत पंचमी के दिन से ही होली आरंभ हो जाती है और उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाई जाती है। इस दिन से होली और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। लोग वासंती वस्त्र धारण कर गायन, वाद्य एवं नृत्य में विभोर हो जाते हैं। ब्रज में तो इसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन किसान नए अन्न में घी और गुड़ मिलाकर अग्नि तथा पितृ तर्पण भी करते हैं।
 रामचरित मानस के अयोध्याकांड में भी ऋतुराज वसंत कि महिमा गाई गई है - 
रितु वसंत हबह त्रिबिध बयारी। 
सब कहं सुलभ पदारथ चारी॥ 
स्त्रक चंदन बनितादिक भोग। 
देखि हरष बिसमय बस लोग॥ 

- अर्थात् वसंत ऋतु है। शीतल, मंद, सुगंध तीन प्रकार की हवा बह रही है। सभी को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पदार्थ सुलभ हैं। माला, चंदन, स्त्री आदि भोगों को देखकर सब लोग हर्ष और विस्मय के वश हो रहे हैं।

वसंत में मौसम खुशनुमा और ऊर्जावान होता है, न ज्यादा ठंडा होता है और न गर्म। यही कारण है कि इस दौरान रचनात्मक व कलात्मक कार्य अधिक होते हैं। इस दौरान प्रकृति लोगों की  कार्यक्षमता में भी वृद्धि करती है, तभी तो लोगों की सृजन क्षमता बढ़ जाती है। ऐसे में भला कैसे सम्भव है कि वसंत पर कोई भी सृजनधर्मी कलम न चलाये।

ऐसा मानते हैं कि वसंत का उत्सव अमर आशावाद का प्रतीक है। वसंत का सच्चा पुजारी जीवन में कभी निराश नहीं होता। पतझड़ में जिस प्रकार वृक्ष के पत्ते गिर जाते हैं, उसी प्रकार वह अपने जीवन में से निराशा और असफलताओं को झटक देता है। निराशा से घिरे हुए जीवन में वसंत आशा का संदेश लेकर आता है। निराशा के वातावरण में आशा की अनोखी किरण फूट पड़ती है।

त्यौहारों की रंगत और उल्लास अपनी जगह है, पर क्या इसे बहाने हम प्रकृति में हो रहे बदलावों के प्रति भी सचेत हैं. ऋतुओं का असमय आना-जाना यदि इसी तरह चलता रहा तो हम तारीखों में ही इन्हें ढूंढते रह जायेंगें. इन त्यौहारों के बहाने यह भी सीखने की जरुरत है कि वसंत का पीलापन और होली के टेसू कैसे बचाए जाएँ...!!

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