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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

विज्ञापनों का गोरखधंधा


विज्ञापनों ने ढँक दिया है
सभी बुराईयों को
हर रोज चढ़ जाती हैं उन पर
कुछ नामी-गिरामी चेहरों की परतें
फिर क्या फर्क पड़ता है
उसमें कीडे़ हों या कीटनाशक
या चिल्लाये कोई सुनीता नारायण
पर इन नन्हें बच्चों को कौन समझाये
विज्ञापनों के पीछे छुपे पैसे का सच
बच्चे तो सिर्फ टी0वी0 और बड़े परदे
पर देखे उस अंकल को ही पहचानते हैं
जिद करते हैं
उस सामान को घर लाने की
बच्चे की जिद के आगे
माँ-बाप भी मजबूर हैं
ऐसे ही चलता है
विज्ञापनों का गोरखधंधा।

- कृष्ण कुमार यादव

9 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच में यह विज्ञापनों को गोरखधंधा है।

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

माँ-बाप को अपने बच्चों को समझाना चाहिए ,इतनी कुव्वत तो उनमे बड़प्पन की होनी ही चाहिए।

Satish Saxena ने कहा…

फिर भी लोग इस पर भरोसा भी खूब करते हैं !
हार्दिक शुभकामनायें आपको !

Pallavi saxena ने कहा…

सत्य वचन ...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

अच्छी सोच के साथ लिखी कविता |दीपावली की अग्रिम शुभकामनायें |

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

अच्छी सोच के साथ लिखी कविता |दीपावली की अग्रिम शुभकामनायें |

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति |
त्योहारों की यह श्रृंखला मुबारक ||

बहुत बहुत बधाई ||

Human ने कहा…

बहुत अच्छी और सार्थक रचना,बधाई!

Urmi ने कहा…

आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/