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शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

नया जीवन


टकटकी बाँधकर देखती है
जैसे कुछ कहना हो
और फुर्र हो जाती है तुरन्त
फिर लौटती है
चोंच में तिनके लिए
अब तो कदमों के पास
आकर बैठने लगी है
आज उसके घोंसले में दिखे
दो छोटे-छोटे अंडे
कुर्सी पर बैठा रहता हूँ
पता नहीं कहाँ से आकर
कुर्सी के हत्थे पर बैठ जाती है
शायद कुछ कहना चाहती है
फिर फुर्र से उड़कर
घोंसले में चली जाती है
सुबह नींद खुलती है
चूँ...चूँ ...चूँ..... की आवाज
यानी दो नये जीवनों का आरंभ
खिड़कियाँ खोलता हूँ
उसकी चमक भरी आँखों से
आँखें टकराती हैं
फिर चूँ....चूँ....चूँ....।

11 टिप्‍पणियां:

Shahroz ने कहा…

नव सृजन का मनोरम भाव चित्रण...बधाई.

Shahroz ने कहा…

नव सृजन का मनोरम भाव चित्रण...बधाई.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

जितना सुंदर चित्र उतनी ही सुंदर कविता.

Unknown ने कहा…

अद्भुत. बड़ा जीवंत चित्रण. खूबसूरत कविता के लिए शुभकामनायें.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

एक सहज बात को सुन्दर शब्दों में ढाला है...साधुवाद.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन का आगमन मनोहारी होता है।

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

bahoot hi sunder chitran... sach unka bhi jeewan kitna hasin hoga .

raghav ने कहा…

नव-जीवन का अद्भुत चित्रण..चित्र भी मनोहरी.बधाई.

raghav ने कहा…

नव-जीवन का अद्भुत चित्रण..चित्र भी मनोहरी.बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

खूबसूरती से बिम्ब को उकेरती कविता..बधाई.

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

नव सृजन की मनोहरी बेला का अद्भुत चित्रण.