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मंगलवार, 18 मई 2010

मेरी कहानी

कल ही एक मित्र का फोन आया
सुना था दिल्ली की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में
उसकी घुसपैठ है
सो आदतन बोल बैठा
यार मेरी भी एक कहानी कहीं लगवा दे
वह हँस कर बोला
यह तो मेरे बायें हाथ का खेल है
मेरा दिल गदगद हुआ
ऐसे दोस्त को पाकर मैं धन्य हुआ
अगले ही दिन
अपनी एक नई कहानी
मित्र के पते पर भिजवा दी
और इंतजार करने लगा
उसके छपने का
दो-तीन माह बाद
सुबह ही सुबह
मित्र का फोन आया
पाँच सौ रूपये का मनीआर्डर
मुझे भेजा जा रहा है
और अगले अंक में
मेरी रचना
छप कर आ रही है
रोज आॅफिस से आते ही
पहले पड़ोस की
पुस्तकों की दुकान पर जाता
और पत्रिका को न पाकर
झल्लाकर वापस चला आता
आखिर
वो शुभ दिन आ ही गया
पत्रिका के पृष्ठ संख्या पैंतीस पर
मेरी कहानी का शीर्षक जगमगा रहा था
तुरन्त उसकी दो प्रतियाँ खरिद
बगल में स्थित मिष्ठान-भंडार से
ताजा मोतीचूर का लड्डू
पैक कराया और
जल्दी से घर आकर
पत्नी को गले लगाया
प्रिये! ये देखो
तुम्हारे पति की कहानी छपी है
पत्नी ने उत्सुकतावश
पत्रिका के पन्ने फड़फड़ाये और
पृष्ठ संख्या पैंतीस पर ज्यों ही हाथ रखा
मैने उसके मुँह में लड्डू डाला
कि वह बोल उठी
पहले आपका नाम तो देख लूँ
कहीं दूसरे की कहानी को तो
अपनी नहीं बता रहे
हाँ.....हाँ.....क्यों नहीं प्रिये
पर यहाँ तो दांव ही उल्टा पड़ गया
कहानी तो मेरी थी
पर छपी किसी दूसरे के नाम से थी
अब अपने दोस्त की
घुसपैठ का माजरा
कुछ-कुछ समझ में आ रहा था
सामने पड़ा पाँच सौ रुपये का मनीआॅर्डर
और मोतीचूर का लड्डू
मुझे मुँह चिढ़ा रहा था !!

31 टिप्‍पणियां:

AKHRAN DA VANZARA ने कहा…

नये लेख्को के साथ ऐसा अक़्सर होता है ...

मै खुद कई बार ठ्गा जा चुका हू

M VERMA ने कहा…

कल ही वैशाखानन्द में पढ़ लिया था. कमेंट भी कर दिया था

Akanksha Yadav ने कहा…

व्यंग्य के बहाने सुन्दर कटाक्ष...बधाई !!

kunwarji's ने कहा…

bhai april fool to kabhi bhi banaya ja sakta hai....
isi dar se ham to kahi apni kritiya bhejte hi nahi,
apna blog.sabka blog...

kunwar ji,

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

sadhani hati..durghatna ghati...dunia ke har kadam pe andha mod hai bhai ...

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खूब ।

SANJEEV RANA ने कहा…

बहुत अच्छा लेख

vandana gupta ने कहा…

सच का तो ज़माना ही नही रहा सभी दूसरे का कंधा प्रयोग करते हैं।

Shyama ने कहा…

मेरे तो दिल्ली में कई ऐसे मित्र हैं, जो पैसे लेकर किसी के नाम से भी लिख सकते हैं. उनके लिए बेरोजगारी के दौर में पैसा महत्वपूर्ण है, न कि रचना या नाम.

Shyama ने कहा…

बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना..बधाई !!

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

कृष्ण कुमार यादव जी, इस कविता के माध्यम से आपने कईयों की नींद उड़ा भी दी और कईयों की खोल भी दी...साधुवाद.

S R Bharti ने कहा…

हा..हा..हा...पढ़कर मजा आ गया. एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है.

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा!! गहरा कटाक्ष है इस बहाने..कितने ही भुक्त भोगी हैं इस तरह की घटनाओं के.

Akanksha Yadav ने कहा…

पहले आपका नाम तो देख लूँ
कहीं दूसरे की कहानी को तो
अपनी नहीं बता रहे
हाँ.....हाँ.....क्यों नहीं प्रिये
पर यहाँ तो दांव ही उल्टा पड़ गया
.....Ye to khub Majedar rahi....!!

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

समझ में नहीं आ रहा क्या कहूँ इस विडम्बना पर...पर इतना जरुर समझ में आ रहा है कि नेता, उद्योगपतियों के नाम से कैसे लेखन का गोरख धंधा होता है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

शुक्र है कि ५००/- का मनीआर्डर तो मिल गया....नहीं तो वो भी जाता..शानदार व्यंग्य रचना..बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

बधाई. आपकी यह व्यंग्य कविता वैशाखानन्द सम्मान प्रतियोगिता में पहले ही पढ़ ली थी....आपकी लेखनी लाजवाब व धारदार है.

Bhanwar Singh ने कहा…

खूब कही. दिल्ली में तो यह आम बात है. घोस्ट राइटिंग का खूब प्रचलन बढ़ रहा है, पर इस मामले में तो दांव ही उल्टा पड़ गया...

Unknown ने कहा…

भैये, सब राम राज है...पत्र-पत्रिकाओं में भी दलालों का बोलबाला है. कोई सुनवाई नहीं है. अपने इसी उठाकर अच्छा ही किया. शायद इसे पढ़कर कुछ लोग सतर्क तो हो जाएँ.

शरद कुमार ने कहा…

सुन्दर और सार्थक व्यंग्य रचना. समाज के सच को उजागर करता कड़वा व्यंग्य.

editor : guftgu ने कहा…

लेखकों-कवियों की व्यथा को शब्द देती लाजवाब कविता. कृष्ण जी को बधाई !!

Shahroz ने कहा…

अच्छा बताया आपने. अब तो हमें कहीं रचना भेजने से पहले एक बार नहीं सौ बार सोचना होगा...

Shahroz ने कहा…

आपकी प्रस्तुति का अंदाज़ निराला लगा..मुबारकवाद.

KK Yadav ने कहा…

आप सभी की हौसला अफजाई व स्नेह के लिए आभार !!

raghav ने कहा…

...हमने तो कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी होता होगा. ज्ञान चक्षु खुल गए. डबल बधाई.

मन-मयूर ने कहा…

प्रिंट आउट निकलकर रख लिया है. आराम से पढूँगा. पहली नजर में तो रोचक, मजेदार लगी पर इसमें कई निहित सन्देश व भाव भी हैं. उनकी मुझे तलाश है..

बेनामी ने कहा…

के.के. जी, आपके लेखन का जवाब नहीं. छाये हुए हैं आजकल..बधाई. वैशाखनंद में एक नहीं तीन बार आपकी रचनाएँ....चौके में अब एक ही रन बाकी है...अडवांस में बधाई ले लें.

बेनामी ने कहा…

और आपकी यह कविता तो धांसू है. कभी हमें भी कुछ ऐसा ही लिख भेजिए जो हम आपने नाम से प्रकाशित कराएँ...जस्ट जोक.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इस रचना में तो आपने सच्चाई के लड्डू खिला दिए....

अच्छा कटाक्ष

हद है ...........

राज भाटिय़ा ने कहा…

अकेले अकेले मोती चुर के लड्डू खाओ गे तो ऎसा ही होगा, वेसे दोस्त इमान दार निकला:) उस ने रचना छपवाने का वादा किया था, नाम का नही

KK Yadav ने कहा…

आप सभी लोगों को हमारी यह कविता पसंद आई, आपने इसे सराहा..आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें !!