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बुधवार, 6 जनवरी 2010

चिट्ठियाँ हों इन्द्रधनुषी

जयकृष्ण राय तुषार जी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत के पेशे के साथ-साथ गीत-ग़ज़ल लिखने में भी सिद्धहस्त हैं. इनकी रचनाएँ देश की तमाम चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाती रहती हैं. मूलत: ग्रामीण परिवेश से ताल्लुक रखने वाले तुषार जी एक अच्छे एडवोकेट व साहित्यकार के साथ-साथ सहृदय व्यक्ति भी हैं. सीधे-सपाट शब्दों में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने वाले वाले तुषार जी ने पिछले दिनों डाकिया पर लिखा एक गीत मुझे समर्पित करते हुए भेंट किया. इस खूबसूरत गीत को आपने ब्लॉग के माध्यम से आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ-

फोन पर
बातें न करना
चिट्ठियाँ लिखना।
हो गया
मुश्किल शहर में
डाकिया दिखना।

चिट्ठियों में
लिखे अक्षर
मुश्किलों में काम आते हैं,
हम कभी रखते
किताबों में इन्हें
कभी सीने से लगाते हैं,
चिट्ठियाँ होतीं
सुनहरे
वक्त का सपना।

इन चिट्ठियों
से भी महकते
फूल झरते हैं,
शब्द
होठों की तरह ही
बात करते हैं
यह हाल सबका
पूछतीं
हो गैर या अपना।

चिट्ठियाँ जब
फेंकता है डाकिया
चूड़ियों सी खनखनाती हैं,
तोड़ती हैं
कठिन सूनापन
स्वप्न आँखों में सजाती हैं,
याद करके
इन्हें रोना या
कभी हँसना।

वक्त पर
ये चिट्ठियाँ
हर रंग के चश्में लगाती हैं,

दिल मिले
तो ये समन्दर
सरहदों के पार जाती हैं,

चिट्ठियाँ हों
इन्द्रधनुषी
रंग भर इतना।

-जयकृष्ण राय तुषार,63 जी/7, बेली कालोनी, स्टेनली रोड, इलाहाबाद, मो0- 9415898913

12 टिप्‍पणियां:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

वक्त पर
ये चिट्ठियाँ
हर रंग के चश्में लगाती हैं,

दिल मिले
तो ये समन्दर
सरहदों के पार जाती हैं,
...Khubsurat Abhivyaktiyan. Tushar ji ko badhai.

Bhanwar Singh ने कहा…

वकालत और साहित्य...बहुत खूब. सुन्दर गीत के लिए बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

वकालत और साहित्य...बहुत खूब. सुन्दर गीत के लिए बधाई.

Unknown ने कहा…

तुषार भाई की रचनाएँ अक्षर-पर्व तथा नया ज्ञानोदय में पढ़ी है. आपका यह गीत दिल को छूता है.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

सीधे-सपाट शब्दों में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने वाले वाले तुषार जी ने पिछले दिनों डाकिया पर लिखा एक गीत मुझे समर्पित करते हुए भेंट किया....अच्छा ही किया. आप डाक सेवा के अधिकारी के साथ-साथ कविवर भी जो हैं..शुभकामनायें.

बेनामी ने कहा…

Badhiya hai ji.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

फोन पर
बातें न करना
चिट्ठियाँ लिखना।
हो गया
मुश्किल शहर में
डाकिया दिखना।
Advocate sahab ki ray kaun tal sakta hai. 2-4 chitthiyan likh hi dalta hoon.sundar geet ki badhai.

Shyama ने कहा…

चिट्ठियां पढ़ते-पढ़ते ही लोग यूँ ही इतने रोमांटिक नहीं हो जाते हैं....सुन्दर भवभिव्यक्तियाँ.

मन-मयूर ने कहा…

चिट्ठियों में
लिखे अक्षर
मुश्किलों में काम आते हैं,
हम कभी रखते
किताबों में इन्हें
कभी सीने से लगाते हैं,
...राय साहब, मेरे दिल की बात छीन ली आपने. के.के. साहब ने अपने ब्लॉग पर आपको स्थान देकर बेहतरीन कार्य किया है....मुबारकवाद.

विनोद पाराशर ने कहा…

डाकिये पर लिखी गयी तुषार जी की कविता पढकर बडा अच्छा लगा.पुरानी यादें फिर से ताजा हो गयीं.डाक विभाग में मॆंने भी अपने कॆरियर की शुरूआत एक डाकिये के रुप में ही की थी.लेखन का शॊक तो था,लेकिन कोई दिशा नहीं थी.डाकिये के रुप में कार्य करते हुए ही-मेरा परिचय-प्रताप सहगल,डा०नरेन्द्र मोहन,डा०महीप सिंह,डा०रामदरश मिश्र व स्वर्गीय गिरिजा कुमार माथुर जॆसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों से हुआ था.यह मेरा सॊभाग्य हॆ कि इन प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साथ,साहित्यिक गोष्टियों में मुझे भी भाग लेने का मॊका मिला.आज मॆं, जो भी थोडा-बहुत लेखन कर रहा हूं,यह सब उन सभी साहित्यिक मित्रों के मार्ग-दर्शन व प्रोत्साहन का परिणाम हॆ.कई बार मॆं सोचता हूं-यदि मॆं उस समय डाकिया न होता,तो शायद साहित्य से कभी न जुड पाता.मॆने भी डाकिये के जीवन पर एक गीत लिखा था.मेरा दुर्भाग्य देखिए-विभागीय डाक-पत्रिका से वह धन्यवाद सहित वापस आ गया लेकिन उज्जॆन से प्रकाशित एक समाचार-पत्र में वह छप गया.

Shahroz ने कहा…

खूबसूरत चिट्ठियां, पढने का आनंद ही दुगुना हो गया.

S R Bharti ने कहा…

मनभावन चिट्ठियां. दूर तक साथ देती हैं. राय जी को साधुवाद.