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मंगलवार, 22 सितंबर 2009

जगप्रसिद्ध है बंगाल की दुर्गा पूजा

नवरात्र और दशहरे की बात हो और बंगाल की दुर्गा-पूजा की चर्चा न हो तो अधूरा ही लगता है। वस्तुतः दुर्गापूजा के बिना एक बंगाली के लिए जीवन की कल्पना भी व्यर्थ है। बंगाल में दशहरे का मतलब रावण दहन नहीं बल्कि दुर्गा पूजा होती है, जिसमें माँ दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार नौवीं सदी में बंगाल में जन्मे बालक व दीपक नामक स्मृतिकारों ने शक्ति उपासना की इस परिपाटी की शुरूआत की। तत्पश्चात दशप्रहारधारिणी के रूप में शक्ति उपासना के शास्त्रीय पृष्ठाधार को रघुनंदन भट्टाचार्य नामक विद्वान ने संपुष्ट किया। बंगाल में प्रथम सार्वजनिक दुर्गा पूजा कुल्लक भट्ट नामक धर्मगुरू के निर्देशन में ताहिरपुर के एक जमींदार नारायण ने की पर यह समारोह पूर्णतया पारिवारिक था। बंगाल के पाल और सेनवशियों ने दूर्गा-पूजा को काफी बढ़ावा दिया। प्लासी के युद्ध (1757) में विजय पश्चात लार्ड क्लाइव ने ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु अपने हिमायती राजा नव कृष्णदेव की सलाह पर कलकत्ते के शोभा बाजार की विशाल पुरातन बाड़ी में भव्य स्तर पर दुर्गा-पूजा की। इसमें कृष्णानगर के महान चित्रकारों और मूर्तिकारों द्वारा निर्मित भव्य मूर्तियाँ बनावाई गईं एवं वर्मा और श्रीलंका से नृत्यांगनाएं बुलवाई गईं। लार्ड क्लाइव ने हाथी पर बैठकर इस समारोह का आनंद लिया। राजा नवकृष्ण देव द्वारा की गई दुर्गा-पूजा की भव्यता से लोग काफी प्रभावित हुए व अन्य राजाओं, सामंतों व जमींदारों ने भी इसी शैली में पूजा आरम्भ की। सन् 1790 में प्रथम बार राजाओं, सामंतो व जमींदारों से परे सामान्य जन रूप में बारह ब्राहमणों ने नदिया जनपद के गुप्ती पाढ़ा नामक स्थान पर सामूहिक रूप से दुर्गा-पूजा का आयोजन किया, तब से यह धीरे-धीरे सामान्य जनजीवन में भी लोकप्रिय होता गया।

बंगाल के साथ-साथ बनारस की दुर्गा पूजा भी जग प्रसिद्ध है। इसका उद्भव प्लासी के युद्ध (1757) पश्चात बंगाल छोड़कर बनारस में बसे पुलिस अधिकारी गोविंदराम मित्र (डी0एस0 पी0) के पौत्र आनंद मोहन ने 1773 में बनारस के बंगाल ड्यौड़ी में किया। प्रारम्भ में यह पूजा पारिवारिक थी पर बाद मे इसने जन-समान्य में व्यापक स्थान पा लिया। आज दुर्गा पूजा दुनिया के कई हिस्सों में आयोजित की जाती है। लंदन में प्रथम दुर्गा पूजा उत्सव 1963 में मना, जो अब एक बड़े समारोह में तब्दील हो चुका है।

9 टिप्‍पणियां:

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

बंगाल की दुर्गा पूजा के बारे में सुना तो था पर पहली बार विस्तार से जानकारी मिली..आभार.

Unknown ने कहा…

Really its interesting one.

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप ने बहुत अच्छी जानकारी दी,वेसे हमारे एक मित्र है वो बहुत बोल रहे थे कि कही दुर्गा पुजा होती हो तो जरुर बताये... ओर आज पता चला आप की बातो से कि बंगाली बंधू के लिये यह पुजा कितनी महतव पुर्ण है.
धन्यवाद

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बारे में अच्छी जानकारी. आभार

डॉ टी एस दराल ने कहा…

दुर्गा पूजा के बारे में अच्छी जानकारी. आभार

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बढ़िया आलेख |

Abhishek Ojha ने कहा…

बंगाल की दुर्गा पूजा और महाराष्ट्र की गणेश पूजा... प्रसिद्द तो है ही. जानकारी बढ़िया रही.

Bhanwar Singh ने कहा…

लंदन में प्रथम दुर्गा पूजा उत्सव 1963 में मना, जो अब एक बड़े समारोह में तब्दील हो चुका है।
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सात समुन्दर पर तक दुर्गा माँ की महिमा...जय हो.

शरद कुमार ने कहा…

चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है...जय माता दी.....सार्थक पोस्ट.