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रविवार, 17 अगस्त 2008

तुम्हें जीता हूँ

मैं तुम्हें जीता हूँ
तुम्हारी साँसों की खुशबू
अभी भी मेरे जेहन में है
तुम्हारी आँखों की गहराइयां
अभी भी उनमें डूबता जाता हूँ
तुम्हारी छुअन का एहसास
अभी भी मुझे गुदगुदाता है
तुम्हारे केशों की राशि
अभी भी मेरे हाथों में है
तुम्हारी पलकों का उठना और गिरना
अभी भी मेरी धडकनों में है
तुम्हारे वो मोती जैसे आंसू
अभी भी मेरी आँखों में हैं
तुम्हारा वो रूठना और मनाना
सब कुछ मेरी यादों में है
नहीं हो तो सिर्फ़ तुम
पर क्या हुआ
तुम्हारे वजूद का एहसास
अभी भी मेरी छाया में है
क्योंकि मैं तुम्हें जीता हूँ ।




***कृष्ण कुमार यादव ***


3 टिप्‍पणियां:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

apki kavitayen dil ko sukun deti hain!

Unknown ने कहा…

तुम्हारे वजूद का एहसास
अभी भी मेरी छाया में है
क्योंकि मैं तुम्हें जीता हूँ ।
...........दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ .

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

इक बेहतरीन कविता !!